Thursday, August 20, 2009

अज्ञात


मुझे गर्व था कि मैं तुझे जानता हूं,
मेरी सभी रचनाओं में दुनिया वाले तेरी छवि देखते हैं|

यहां कर वे पूछते हैं "ये कौन है?"
मैं आवाक् रह जाता हूं, "कौन जाने!" यही कह देता हूं|

वे मुझे भला बुरा कह कर अवज्ञा से मुंह फेर कर चले जाते हैं,

तेरी छवि मुस्कुराती है|

तेरी कहानी को अमर गीतों में बांधत

मेरे ह्रृदय के निर्झर से वे गीत स्वतः बहते हैं|


वे आकर पूछते हैं, "इन गीतों का अर्थ क्या है?"

उन्हे क्या कहूं, यही कह देता हूं, "कौन जाने क्या अर्थ है इनका|"

वे मुझे भला बुरा कह कर अवज्ञा से मुंह फेर कर चले जाते हैं,

तू मुस्कुराता हुआ बैठा रहता है|

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